header logo image

राजस्थान पशु चिकित्सा और पशु विज्ञान विश्‍वविद्यालय, बीकानेर
Rajasthan University of Veterinary and Animal Sciences, Bikaner (Accredited by VCI and ICAR)

वन्य जीवों के बचाव की तकनीक पर कार्यशाला आयोजित

बीकानेर, 12 दिसम्बर। राजस्थान पशुचिकित्सा और पशु विज्ञान विश्वविद्यालय, बीकानेर के वन्य जीव अध्ययन एवं प्रबंधन केन्द्र द्वारा “वन्य जीवों के बचाव तकनीको“ विषय पर एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया। कार्यशाला के उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए माननीय कुलगुरु डॉ. सुमंत व्यास ने कहा की वन्य जीव, मानव जीवन का अभिन्न हिस्सा है और बिना वन्य जीव के मानव जीवन संभव नही है। प्राकृतिक आपदा एवं सड़क दुर्घटना के बाद वन्य जीवो को मिलने वाली प्राथमिक वेटरनरी चिकित्सा एवं देख रेख उनके बचाव का महत्वपूर्ण हिस्सा है। उन्होने सभी प्रतिभागियों को वन्य जीव उपचार की तकनीकों को इस कार्यशाला के माध्यम से सीखने हेतु प्रेरित किया। माननीय कुलगुरु डॉ. सुमंत व्यास ने आमजन से वन्यजीवों के बारे में अधिकाधिक सही जानकारी पशुचिकित्सकों से साझा करने का आग्रह किया ताकि वन्य जीवों को अकारण होने वाली मौतो से बचाया जा सके। कार्यशाला के मुख्य अतिथि उपवन संरक्षक श्री संदीप कुमार छलानी ने बताया कि बचाव की तकनीकें पशुचिकित्सकों को सीखनी अतिआवश्यक है क्योकि जिस तरह से कृषि योग्य भूमि बढ़ रही है उससे वन्यजीवों का विचरण होना कम होता जा रहा है जिससे वन्य जीवों को अधिक खतरा हाने लगा है। कार्यक्रम में निदेशक अनुसंधान डॉ. राजेश कुमार धूड़िया ने बताया कि वन्यजीव हमारे सनातन धर्म की परंपरा का अभिन्न हिस्सा है। हमारे सभी अवतारों और देवी देवताओं के वाहन वन्य जीव ही है। अतः इनका संरक्षण एवं संवर्धन हमारा नैतिक दायित्व है। वेटरनरी विश्वविद्यालय, बीकानेर के अधिष्ठाता डॉ. हेमन्त दाधीच ने सर्प प्रजाती के महत्व एवं उनके बचाव की तकनीक को आमजन तक पहुंचाने का आग्रह किया तथा ये भी बताया की आधुनिक तकनीकों का उपयोग बढ़ाते हुऐं वन्यजीवों का अधिकाधिक बचाव किया जा सकता है। वन विभाग की टीम ने प्रतियोगियों को वन्यजीवों के बचाव के तरीकों को प्रायोगिक तौर पर प्रदर्शित किया जिसमें डार्ट गन, ब्लो पाइप, स्नेक केचिंग तकनीकें शामिल है। इस कार्यशाला में डॉ. महेन्द्र तंवर ने रासायनिक स्थरीकरण विधि पर तथा डॉ. संघर्ष दुबे ने वन्यजीवों के पुनर्वास की तकनीकों पर व्याख्यान दिया। केन्द्र के मुख्य अन्वेशक डॉ. जे.पी. कछावा ने बताया कि राजुवास का यह केन्द्र विगत 13 वर्षो से लगातार वन्यजीवों पर अध्ययन कर रहा है। प्रवासी पक्षीयों के आवागमन और गिद्धो के पुनर्वास पर काम कर रहा है। इस कार्यशाला में 20 प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया जो यहां से सीखने के बाद अपने क्षेत्रों में सहजता से वन्यजीवों पर कार्य कर सकेंगे। कार्यक्रम के अन्त में सह मुख्य अन्वेशक डॉ. लक्ष्मी नारायण सांखला ने आगन्तुकों का धन्यवाद ज्ञापित किया। कार्यक्रम का संचालन डॉ. प्रियंका राठौड़ ने किया।