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राजस्थान पशु चिकित्सा और पशु विज्ञान विश्‍वविद्यालय, बीकानेर Rajasthan University of Veterinary and Animal Sciences, Bikaner (Accredited by VCI and ICAR)

राजुवास ई-पशुपालक चौपाल का आयोजन पशुओं में रेबीज रोग से बचाव ही उपाय है

बीकानेर, 11 मई। वेटरनरी विश्वविद्यालय के प्रसार शिक्षा निदेशालय द्वारा राज्य स्तरीय ई-पशुपालक चौपाल बुधवार को आयोजित की गई। पशुओं में रेबीज रोग: कारण और बचाव विषय पर प्रो. अनिल आहुजा ने पशुपालकों से वार्ता की। निदेशक प्रसार शिक्षा प्रो. राजेश कुमार धूड़िया ने विषय प्रवर्तन करते हुए बताया कि पशुओं में रेबीज रोग एक भयावाह बीमारी है जो प्रायः कुत्तो के काटने से पशुओं एवं मनुष्य में होती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार दुनियाभर में हर साल लगभग 59,000 लोगों की रेबीज रोग के कारण मृत्यु हो जाती है। भारत में प्रतिवर्ष 18,000 से 20,000 लोगों की मृत्यु रेबीज के कारण होती है। इस रोग से बचाव ही उपाय है। आमंत्रित विशेषज्ञ प्रो. अनिल आहुजा, पूर्व निदेशक क्लीनिक, वेटरनरी विश्वविद्यालय, बीकानेर ने ई-चौपाल के माध्यम से पशुपालकों को विस्तृत जानकारी देते हुए बताया कि रेबीज या हिड़काव रोग प्रायः स्तनधारी या गर्म खून वाले जीेवों में होता है। इस रोग का मुख्य कारण विषाणु है जो कि कुत्तो, बिल्लियों की लार में पाया जाता है। चमगादड़ भी इस वायरस के वाहक का कार्य करते है। पशुओं में यह रोग प्रायः कुत्तो में काटने से फैलता है शरीर पर घावों के माध्यम से यह विषाणु शरीर में तंत्रिका-तंत्र के माध्यम से मस्तिष्क तक पहुंच जाता है एवं इस बीमारी के लक्षण उत्पन्न करता है। रेबीज रोग से ग्रसित पशु उत्तेजित नजर आते है एवं शरीर की मांस पेशीयो में लकवा उत्पन्न हो जाने से खाने-पीने में असमर्थ हो जाते है। उत्तेजना की अवस्था में रेबीज ग्रसित पशु दूसरे पशुओं को काटते है तो यह रोग होता है। चूंकि रोग के लक्षण उत्पन्न हो जाने पश्चात इस रोग का कोई ईलाज नहीं है अतः पशुपालकों को समय पर अपने पशुओं को एन्टीरेबीज टीकाकरण करवाना चाहिए। कुत्तो के काटने के उपरान्त भी पशुचिकित्सक की सलाह से पशुओं का पूरा टीकाकरण करवाना चाहिए। पशुपालक भाई पशुओं के व्यवहार में आए अचानक बदलाव, रेबीज रोग के लक्षणों को पहचानकर एवं समय पर टीकाकरण करवाकर इस रोग के कुप्रभाव से पशुओं को और अपने आप को बचा सकते है।